Sunday 19 January 2014

उनमें हम, हममें वो

कुछ ऐसी अदा से उन्होंने हमें देखा,
कि उन्हें मैं बस देखता ही रहा...
कब दिन से रात और रात से दिन हुआ,
यह भी लगा जैसे एक जुआ...
कब वो गए, कब वो लौट के सामने बैठे,
कैसे बताएं? वोह अब हमारी आँखों में हैं रह्ते…

उनकी हंसी ने फिर हमें ऐसे आके छुआ,
लगा जैसे उसने मानली हमारी अनकही दुआ...
शरमाते हुए, वोह ज़मीन की ओर देखने  लगे,
वोह संगेमरमर के टुकड़े भी मानो जैसे आईने बन गए,
उनकी मुस्कराहट को हम तक पहुंचा ही दिया…
फिर भी हमसे एक कदम आगे न लिया गया…
उस दुनिया से अनजान, मासूम नज़ारे को देख,
हमने खुदा से बोला, हमारी सांस बस अभी तू ले…

इस पल से ज़यादा ख़ुशी का पल,
फिर शायद न आये कल…
इस पल को अपने ज़हन में कैद करे,
उनकी रौशनी को अपने में भरे,
आज आने दे तेरे पास,
अब नहीं बची कोई आस…
उसे पा लें या तुझे पा लें,
दोनों के साथ में ही तो जन्नत है…

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