Wednesday 20 May 2015

तुम और मैं

कुछ शब्द जो रह गए थे अनकहे,
शायद अब हमेशा ऐसे ही रहे।
तो क्या हुआ जो तुम्हारे होंठ वह न कह पाये,
जो ख्याल हमारे दिल में भी थे समाये?

नज़रें, यह नज़रें तुम्हारी हमारी,
बिन कहे कह जाती हैं बात सारी।
ज़माने को नहीं सुनानी हमारी यह दिल की बातें,
बस चाँद में एक दुसरे को देखके बिताते यह रातें।

और आगे बढ़ने की जुर्रत नहीं कर सकते थे हम,
तुम्हारी ओर हमारा एक कदम, तुम्हारे दूसरी ओर दस कदम।
शायद कुछ रिश्तों की पहचान ही है दूरी,
निकटता मिटा देती जिनकी खूबसूरती।

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