आते जाते वाहनों का शोर,
वह नाव इस छोर से दुसरे छोर,
सावन आज, कल से ज़्यादा घनघोर,
जैसे सब राह देखे तुम्हारी ओ भोर!
कब आओगी तुम इस प्रश्न में घुमते,
कभी नाचते हुए, कभी झूमते,
यह वाहन, नाव और बारिश की बूँदें,
सब के सब जैसे तुम्हें हैं ढूंढें।
अब और न तरसाओ इन निर्जीवों को,
इनके असमंजस को अब मिटा दो,
कि अब आओगी भी या नहीं तुम?
मन ही मन यह गाते तुम्हारी धुन।
कहीं इस घनी रात्रि ने तो नहीं छुपाया,
अपनी काया में तुम्हारा साया?
आज तक प्रतीक्षा का समय इतना न हुआ,
तो क्यों न सुने तू इनकी और हमारी दुआ?
ए भोर अब आ भी जा तू,
सब्र की परीक्षा न ले यु।
क्या प्रवेश मार्ग से तुम्हारी वाणी सुनाई दी है?
न जाने क्यों, तुमसे पहले आज तुम्हारी सुगंध आई है।
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